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जान कर अनजान हो गए



✍️डॉ रघुनाथ मिश्र 'सहज'

जान कर अनजान हो गए।

जब से वे महान हो गए।

 

भागते ही जा रहे अबाध,

लक्ष्य भी अनुमान हो गए।

 

जो जँचेगा वो करेंगे हम,

अब यही विधान हो गए।

 

हर सुबह फँसे कोई नया,

यह नए दिनमान हो गए।

 

एकता की पीठ में छुरा,

जारी फरमान हो गए।

 

वोट के लिए बड़े-बड़े,

यज्ञ – पुण्य - दान हो गए।

 

चुनाव सर पे हैं इसी लिए,

सब कठिन आसान हो गए।

 

विशिष्ट शख्सियत की मांग पर,

आदमी  सामान  हो गए। 

 

कल तलक थे जो जमीन वे,

आज आसमान हो गए।

 

*कोटा (राजस्थान)

 


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