Subscribe Us

गरीबी को भी ओढ़ना और



✍️अ कीर्ति वर्द्धन 


गरीबी को भी ओढ़ना और बिछाना जानता हूँ
भूख से व्याकुल भले ही, मुस्कुराना जानता हूँ।
अभावों में भी सन्तुष्टि, लक्ष्य जीवन का रहा,
झोपड़ी में बच्चों संग, महल का सुख जानता हूँ।
हैं बहुत तन्हां महल, सब रहें अलग अलग,
बच्चों से हो बात कैसे, दर्द महल का जानता हूँ।
अर्थ को समर्थ समझते, व्यर्थ जीवन जी रहे,
असमर्थ रहकर भी जीवन, सार्थकता जानता हूँ।


अपने विचार/रचना आप भी हमें मेल कर सकते है- shabdpravah.ujjain@gmail.com पर।


साहित्य, कला, संस्कृति और समाज से जुड़ी लेख/रचनाएँ/समाचार अब नये वेब पोर्टल  शाश्वत सृजन पर देखेhttp://shashwatsrijan.com


यूटूयुब चैनल देखें और सब्सक्राइब करे- https://www.youtube.com/channel/UCpRyX9VM7WEY39QytlBjZiw 


एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ