✍️ललित भाटी
अपने मां बाबूजी जब से स्वर्ग सिधारे,
तब से तूने ही दूर किए मेरे जीवन के अंधियारे।
क़भी जिम्मेदार पिता बनकर तूने मुझे डांटा,
तो क़भी ममतामयी मां बनकर भी मुझको पाला।
क़भी बड़ा भाई बनकर मुझे सहलाया, समझाया,
तो क़भी मास्टरजी बनकर डंडा भी दिखलाया,
प्रति क्षण तूने अपने बड़े होने को ही निभाया।
तू दाता रही, इसलिए आज भी कुछ चाह रहा हूं,
अपनी कलाई पर राखी का पवित्र बंधन मांग रहा हूं।
*इंदौर
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