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ये न समझ चीन









*शिवांश सिंह 'व्याकुल'


लिपुलेख, कालापानी को बता रहे हो अपना
चीन ने तुमको दिखलाया है ये मनमोहक सपना!
चीन के पीठ पर बैठकर, आंख दिखा रहे, हो लाल
ऐसा धोखेबाज तो नहीं था , हमारा पड़ोसी नेपाल!
और चीन ये नहीं है समझ ले, उन्नीस सौ बासठ का युद्ध
तेरे दिए वायरस से तो सारी दुनिया , वैसे ही है क्रुद्ध!
अब मत कर कोई कारिस्तानी... क्रोध हमारा बढ़ जाए
एक एक सैनिक हमारा .., तेरे बीजिंग तक चढ़ जाए!
युद्ध नहीं मकसद हमारा, मानवता पर आंच पड़ी है
ठंडे दिमाग से सोच ले थोडा,ये नहीं लड़ने की ड़ी है!
अगर नहीं माना फिर भी तू ,हम नहीं चुप बैठेंगे....
तेरे जिनपिंग के नाक, कान को. आकर के हम ऐठेंगे!
'स्ट्रिंग ऑफ पर्ल' की नीति बनाकर भारत को तू घेर रहा
और समझता इस दुनिया का तू ही अकेला शेर रहा!
भारत की संप्रभुता पर, जब भी खतरा आएगा
हर एक भारतवासी, तेरी छाती पर चढ जाएगा!
फूट डालता आकर के तू हमारे, पड़ोसी देश में
नहीं परचित है शायद वे, तेरी विस्तारवादी वेश से!
तू समझता पाक और, नेपाल तेरे साथ खड़े है
अमेरिका और रूस भी फिर, हमारे ही साथ अडे है!
वैश्विक स्तर पर कहीं भी, तू नहीं टिक पाएगा
तेरा चाइना माल दुनिया में कहीं नहीं बिक पाएगा!
पाक का पीएम आकर के जो, तेरे तलवे चाटे
बदले में तू उसको जाकर, खैराते है बाटे!
खूब समझते है हम तेरी, नौटंकी और चाल
क्यों तू इन छोटे देशों, को आज रहा है पाल!
इनके आइसलैंड,पोर्ट खरीदकर, बाद में कमाएगा माल
और इन देशों का होगा, भीखमंगे का हाल!
इन छोटे देशों को लेकर गर्व से रहा है फूल
तेरे सारे घमंड को हम, युद्ध में करेंगे धूल!
*जौनपुर


 


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