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व्हाटसएप फेसबुक कथा



*माया बदेका

आज मन में आया है,सभी का अभिनंदन करने को जी चाहता है। मेरे व्हाटसप के बेताज बादशाहों ,मेरे फेसबुक के एकछत्र राजाओं। प्यारी बेगमों ,प्रिय रानियों सादर अभिवादन। राजा किसी देश का हो सकता है, बादशाह किसी मुल्क का हो सकता है। बेगम और रानी भी उसी श्रेणी में आते हैं। ज्यादा से ज्यादा चक्रवर्ती राजा और बादशाह और रोज नये राज्य के राजा साहित्यिक क्षैत्र में हजारों राज्य यानी समूह और उनका देश से परदेश तक विस्तार । इन राजाओं इन बादशाहों को कोई लड़ाई नहीं जितना, कोई जंग नहीं जितना, बस घर बैठे राज्य विस्तार और उन पर नियम कानून की पाबंदी और फिर शासन । घर बैठे बैठे दिन भर अपने राज्य की सीमा पर चौकसी करना। हां तो यही वह राज्य और मुल्क है फेसबुक और व्हाटसएप।

जिनके एडमिन मतलब संचालक अपना समूह बनाते हैं मतलब अपना राज्य। फिर दूसरे राज्य यानी समूह में घुस जाते हैं और फिर एक दूसरे की प्रजा को यानी लेखकों को पाठकों को अपने राज्य यानी समूह में सम्मिलित कर लेते हैं। ज्यादातर तो बिना अनुमति के ही  समूह में जोड़ लिये जाते हैं यदि  प्रजा यानी लेखक या पाठक  सरल सहज है तो चुप रहेगा वरना विपक्ष की तरह बवाल करेगा। कृपया बताये आपने बिना अनुमति कैसे हमें जोड़ा ? या तो वह पलायन कर लेते हैं अथवा सर चढ़कर बोलते हैं, क्योंकि आपने जोड़ा आपने बुलाया, आपको गरज है अपना राज्य यानी समूह चलाने की।

कुछ राज्यों मतलब समूह पर हिंदी भाषा के लिए जी लगाकर उसके प्रचार प्रसार की बात की जाती है और वही पर फिर अंग्रेजी में लिखाई भी दिखाई देती है और फिर संचालकों की धमकी भरे शब्द इस बार आपको माफ किया जाता है आगे की गलती पर राज्य से यानी समूह से निकाल दिया जायेगा यानी जैसे देश निकाले का फरमान। तड़ीपार भी पढ़ ले तो पढ़कर लज्जित हो जाये ऐसा फरमान।

अब और भी गाथाएं राजाओं बादशाहों की।अब राजा बादशाह ठहरे,सीमा विस्तार कर ली तो अकेले सिरदर्द हो गया तो राज्य में यानी समूह में और एडमिन यानी संचालक नियुक्त कर दिये। बहुत प्रेम से उसका समय और दिमाग दोनों ही स्वाहा। प्रमुख तो लगे रहते हैं ,अपने अन्य क्रियाकलापों में और उनकी गैरमौजूदगी में संचालन का भार नियुक्त किये संचालकों पर आता है। उनकी तनातनी का तो जवाब नही।इन बाक्स यानी उनके चित्र रूपी घर में जाकर गूफ्तगू।और फिर समूह पर आकर कह देना कि आगे से इस इस बात का ख्याल रखा जाये।

कुछ राज्यों में यानी समूह पर हिंदी गद्य, पद्य की विधाएं सिखाई जाती है जैसे की छंद, चौपाई, तुकांत कविता, गीत गीतिका, लघुकथा और अब तो विदेशी विधाएं भी हायकु वगैरह।गजल का भी प्रावधान है अगर आपको उर्दू आती है कोशिश कर सकते हैं वरना रोज विषय प्रदाता की फटकार। मुझ जैसा अनाड़ी कभी पूछ बैठे की वार्णिक छंद या मात्रिक छंद को पूरा विस्तार से बताइए तो उस दिन सुबह से रात तक पूछताछ केंद्र बंद होता है।नेट नहीं आता है या फिर अरे आपका प्रश्न देखने से वंचित रह गये अन्यथा उत्तर अवश्य देते अब तो विषयकाल समाप्त है।कर लो और पूछताछ।

कुछ राज्य यानी समूह सचमुच बहुत अच्छे हैं जहां बहुत बारीकी से निरीक्षण करके पुस्तिका जांची जाती है और बहुत अच्छी तरह सिखाया जाता है। बहुत विद्वान और वाचस्पति गुणीजन भी है जो बहुत अच्छा शिक्षण देते हैं। लेकिन अधिकतर बहुत सारे राज्य यानी समूह बनाकर राजा या बादशाह बन जाते हैं उनको लगता है प्रसिद्ध होने का यह बहुत अच्छा माध्यम है।वह लोग अपना स्वयं का विस्तार करते हैं लेकिन जो सदस्य इन्होंने जोड़े होते हैं उनको संचालन भार देकर अपनी किसी बड़ी गतिविधियों में लग जाते हैं और जोड़ा हुआ सदस्य गुलाम जैसा दिन भर उनका मंच चलाता रहता है। अखबार में छपी खबरें की भव्य समारोह आज इस मंच के अध्यक्ष ने यह किया ऐसा किया और बड़ा सा चित्र भी।संगी साथीयों को फिर उसी अखबार की प्रस्तुति पर समूह में तालियां ही बजाना है उनको तो बस वाह वाह, बहुत खूब, हार्दिक बधाई आदि ऐसे ही शब्दों का प्रयोग करना है। बहुत सारे विस्तारक तो  साझा पुस्तकों का विमोचन भी करवाते हैं।सभी सदस्यों की रचना लेकर उन्हीं से कुछ धनराशि लेकर पुस्तक विमोचन हो जाता है। आजकल लाकडाउन में तो राजाओं बादशाहों की तरफ से भरपूर मनोरंजन के साधन भी दिये जा रहे हैं। राज्य यानी समूह पर कवि सम्मेलन की भरमार है।अंतक्षारी कार्यक्रम भी और लघुकथा वाचन भी।

फिर प्रशस्ति पत्र भी,प्रमाण पत्र भी।अब और क्या चाहिए। न जाने आने में समय लगता है न खर्च होता है,न मंच का खर्च न कवियों को कुछ मेहनताना और न ही भोजन की व्यवस्था का झंझट।अब बतायें इतनी सारी खूबियों के बाद कोई कैसे  राज्य यानी समूह से बाहर जाये। थोड़ी बहुत खिंचाखांची चलती है चलने दो हम भी इसी में सम्मिलित हैं खूब मज़े से कवि सम्मेलन खूब सारी गोष्ठी डिजिटल चर्चा सभी कुछ। दिन भर वाह वाह वाह करते रहने से मन प्रसन्न रहता है। खूब राज्य यानी समूह बनाओ पर जिनको जोड़ते हो उन पर थोड़ा तरस खाओ। व्हाटसप समूह बनाकर, फेसबुक समूह बनाकर उस पर जो आपके साथ जुड़े हुए हैं या आपने खुद जोड़ लिया है तो उनका ध्यान भी रखे। व्हाटसप फेसबुक के बेताज बादशाहों।

*उज्जैन मध्यप्रदेश

 


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