✍️भानु प्रताप मौर्य 'अंश'
मैं स्वयं से बहुत ही था हारा हुआ,
तुम मिले मन समझ कुछ सभलने लगा।
पूर्व इससें मेरी जिदंगी शून्य थी,
अंक में इसको तुमनें है बदला प्रिये।
खास कोई न था पास कोई नहीं,
आस के बुझ गये थे जले सब दिये।
मन के वीराने वन में कोई भी न था,
यूं अनायास आये तो अच्छा लगा।
मैं स्वयं से............................
साथ देकर सहारा हो मेरा बने,
स्वप्न में भी कभी दूर होना नहीं।
तुमसे आशाएं हैं तुमपे विश्वास है,
याद रखना कभी इसको खोना नहीं।
मैंने अन्तर हृदय से तुम्हें चुन लिया,
फैसला ये मेरा तुमको कैसा लगा।
मैं स्वयं से बहुत ही था हारा हुआ,
तुम मिले मन सभल कुछ सभलने लगा।।
ग्राम-जमोलिया, निन्दूरा, बाराबंकी (उ.प्र.)
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