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शर्म तो स्त्रियों का गहना है और पुरुषों का?



✍️मीनाक्षी भसीन
मुझे न आनी चाहिए शर्म यदि मेरे तन पर कपड़े कुछ कम हैं, और अगर कोई गुंडा या बेशर्म शख्स मुझे घूर-घूर कर परेशान कर रहा है, तो मुझमें तो अक्ल है न मुझे अपनी निगाहें नीचे कर लेनी चाहिए, क्योंकि अगर मैंने ठान ली उसे घूरने की तो यह कहा जाएगा कि मुझे भी मज़ा आ रहा है, क्योंकि यह मजे उठाने का हक तो समाज में पुरुषों को ही मिला हुआ है,हमें तो जन्मजात मिला हुआ है शर्म नाम का गहना जो एक ही गहना है, जो जबरदस्ती थोप दिया गया है कन्याओं पर उसी क्षण जब वो पहली बार कोख से बाहर निकलती हैं, मैं न हर रोज आते-जाते सुनती हूं कई बार, मैं तो अच्छी खासी सोसायटी में रहती हूं,
हर तरफ पार्क में, बहुत बढ़िया कपड़ों में सुसज्जित बिलकुल मॉर्डन टाईप के शिक्षित लोग ही नज़र आते हैं, और शायद लिबाज में मैं ही उनके सामने कुछ साधारण सी दिखती हूं।


पर न जब जब टहलते-टहलते उनकी बातचीत के कुछ शब्द मेरे कानों में पढ़ते हैं तो मेरे मन में अंगारे से उठते हैं, लगता है मैं ही ठीक हूं, कह रही थी ऑटी इशारे में, वो देखो उस लड़की, हमेशा लड़कों में ही घुसी रहती है, कपड़ों की भी तमीज नहीं बेशर्मी की तो हद होती है, वो जो थर्ड फलोर पर रहती हैं न उसका एम ब्लाक वाले के साथ चक्कर है, पहले शरीफ होती थी लड़कियां शिक्षा, स्वतंत्रता ने किया इनके चरित्र को बदतर है, हिचकिचाहट तो होनी ही चाहिए अगर मुझे किसी पर-पुरुष से बात करनी है, और शायद डूब मरने की बात है अगर मैं हिमाकत कर बैठती हूं किसी पुरुष को प्रेम प्रस्ताव प्रस्तुत करके, क्योंकि मुझे तो इंतजार करना है तब तक, जब तक वो न कहे, अगर मैने कह दिया तो यह तो मेरे दुश्चरित्र का प्रणाम-पत्र है,


प्रेम को शब्दों में कहना यह तो बहुत सहज गुण है न, मां कह सकती है बेटे से बहिन कह सकती है भाई से, पर एक लड़की अगर कह दे लड़के से तो प्रश्नचिह्न है। मैने आज तक नहीं सुना कि किसी लड़की ने डाल दिया हो ऐसिड किसी लड़के पर क्योंकि उसने ‘न’ कर दिया हो, मैने नहीं सुना कि कोई लड़की लगातार पीछा कर रही हो लड़के का, चूंकि वो उसके लिए पागल है, मैने नहीं सुना किसी लड़के पर गुस्सा आने से लड़कियों के समूह ने किसी लड़के की इज्जत लूट ली हो, हैरानी की क्या बात है ऐसा संभव है, हां,आजकल कुछ किस्से आ रहे हैं वैवाहिक स्त्रियों के दूसरे पुरुष से दोस्ती करने के, पर पुरुषों को तो यह हक जन्म से मिल ही गया है न, एक ही समय में अनेक स्त्रियों से संबंध बनाना, और गौर कीजिए जब भी पुरुष से यह सवाल पूछा गया तो हमारे समाज के स्वत: बने न्यायधीशों ने क्या कहा - जिसमें स्त्रियों की भी एक बड़ी संख्या शामिल है, कि पुरुष तो होते ही ऐसे, उस स्त्री को क्या पड़ी थी किसी का घर उजाड़ने की,


अरे! अरे! अरे! बस करो इतना दोगलापन, शरीर की बनावट को छोड़कर सब कुछ एक ही है, न तो भावनाएं, एहसास, जज्बात, तमन्नाएं भी तो एक ही है, ये है कौन जो यह अलग-अलग नियम बना रहा है, समाज को मर्यादा का यह अजीबोगरीब पाठ सिखा रहा है, शर्म की कोई जरुरत नहीं है हमें, हम अपनी शिक्षा, अपनी स्पष्टवादिता से , अपने खूबसूरत विचारों से ही चमक जाते हैं, शर्म नाम का गहना तो अब उन लोगों को भेंट कर दीजिए, जो अपने मन में इतने गंदे विचार रखते हुए, मन ही मन वासनाओं से ग्रसित हो हम स्त्रियों को शर्म और चरित्र का गहना पहनाने बेशर्मी से चले आते हैं। 


*द्वारका दिल्ली


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