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सावन बीता जाए



✍️अशोक 'आनन'

सावन  बीता  जाए  साजन !  सावन  बीता  जाए ।

कैसे  काटूं   रैन  अंधेरी ; नागिन  बन - बन  खाए ।

 

ठंडी - ठंडी   पवन   चलत   है ;

बादल   घिर - घिर  आएं ।

मोती     जैसी     बूंदें     बरसें ;

तन - मन   भींगा   जाए ।

 

याद तुम्हारी  दिल को साजन !  रह - रहकर  तड़पाए ।

कैसे   काटूं   रैन  अंधेरी ;   नागिन   बन - बन   खाए ।

 

मोर , पपीहा , झींगुर , सारस ;

मिलकर    शोर    मचाएं ।

नाचें  ,   कूदें ,    झूमें ,    गाएं ;

फूलें        न        समाएं ।

 

बात विरह की कोई साजन ! आज न  दिल को  भाए ।

कैसे  काटूं   रैन   अंधेरी   ;   नागिन  बन - बन  खाए ।

 

बादल    बैरी  ,  बिजली   सौतन ;

मिलकर    आग      लगाएं ।

टप  -  टप    टपकें    आंसू    मेरे  ;

काजल   धुल - धुल   जाए ।

 

सांझ - सवेरे  पथ  पर तेरे , साजन ! नैन  बिछाए ।

कैसे  काटूं  रैन अंधेरी  ;  नागिन  बन- बन  खाए ।

 

*मक्सी,  जिला - शाजापुर ( म.प्र.)

 


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