*नवीन माथुर पंचोली
रस्ता ठहरा-ठहरा क्यों है।
घर के बाहर पहरा क्यों है।
सोच रही हैं आँखें भारी,
रात बिना तम गहरा क्यों है।
सबके मुश्किल हालातों में,
उनका ख़ाब सुनहरा क्यों है।
इंसानों की तो हद न कोई,
इंसा हद पर ठहरा क्यों है।
तन,मन,धन वालों का जमघट,
लगता आख़िर सहरा क्यों है।
आमजनों की सुनवाई में,
मुंसिफ़ इतना बहरा क्यों है।
अमझेरा धार मप्र
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