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पिता की यादें



*संजय वर्मा 'दृष्टि'

गुजर गए पिता की 
स्मृतियों को याद करके 
सोचता हूँ ,कितना सूनापन 
उनके बिना।

घर में उनकी सहेजी हुई 

हर चीज को जब छूता हूँ

तब उनके जिवंतता का

अहसास होने लगता।

डबडबाई आँखों से

एलबम के पन्ने उलटता 

तब जीवन में उनके 
संग होने का आभास होता।

पिता की बात निकलने पर 

अच्छाईयाँ मानस पटल पर 

स्मृतियों में उर्जा भरने लगती। 

जब परीक्षा में पास होता 

तब पिता शाबासी से 

पीठ थपथपाते 

आज उनके बिना पीठ सुनी। 

स्मृतियाँ अमर 
लेकिन यादों की उर्जा पर 
इसलिए कहा गया है कि 
करोगें याद तो हर बात 
याद आएगी ।

*मनावर जिला -धार (मप्र )

 


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