✍️मीरा जैन
राज्यसभा के लिए चुने गए सदस्यों की संख्या देख राज्य के दोनों दलों के अध्यक्ष हतप्रभ थे, क्योंकि दोनों दलों के पास जितने विधायक थे बिल्कुल उन्हीं के अनुरूप सीटें मिली जबकि दोनों दलों ने विधायकों अच्छी खासी खरीद-फरोख्त की थी लेकिन सब गुड गोबर कैसे हो गया यह दोनों अध्यक्षों को समझ में नहीं आ रहा था वह तो यह मान कर चल ही रहे थे कि 'खरीदे गए विधायकों ने उनके साथ धोखा किया है किसी ने एक वोट भी इधर का उधर नहीं डाला' दोनों दुखी थे कि गए करोड़ों रुपए पानी में और यह ऐसा विषय था जिसका जिक्र भी नामुमकिन था फिर भी एड़ी से चोटी का जोर लगा दबाव बना विधायकों से सच उगलवाया लेकिन विधायकों ने पूर्ण ईमानदारी के साथ कहां कि-'हमने आपकी ही पार्टी को वोट दिया है '
फिर यह घपला कैसे हुआ ? अंत तक दोनों दलों के अध्यक्षों को समझ में नहीं आया। बात दरअसल इतनी सी थी कि दोनों पार्टियों नहीं दस - दस विधायकों पर अपने दांव लगाए थे.
*उज्जैन, म.प्र.
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