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न नीरज यहां अब तो न बेकल रहे



✍️साजिद इक़बाल


न नीरज यहां अब तो न बेकल रहे

यहां पर हमेशा ईक़ ग़ज़ल रहे 

 

जहां में जो दौलत पाए जकात कर

रज़ा  हो न रब की  कैसे  महल रहे

 

हे सैलाब खतरा आज  ये खौफ है

ये उम्मीद है मुझको  के फसल रहे

 

यही कह रहे  बच्चे  मर  जाएं क्या           

फटे  हाल   कैसे  फिर  कंबल  रहे 

 

यही खोफ़  मुजरिम पास यहां वहां

कहां  कौन  जाने  आज   टहल रहे

 

यहां   जानता   जो    मैं  भी  तैरना

ये सब चाल है कीचड़ में कमल रहे

 

*लखनऊ

 


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