✍️डॉ. अवधेश कुमार 'अवध'
बहुत बनाया घर मगर, रहा सदा अनिकेत।
मजदूरों के भाग्य में, नहीं बगीचा - खेत।।
छींका भी है टूटता, जब होता संयोग।
बिल्ली का पुरुषार्थ यह, समझ रहे कुछ लोग।।
आपस में कायम रखो, सदा सत्य संवाद।
यह समाज के मेल को, करता है आबाद।।
रामचरित मानस दिये, कविकर तुलसीदास।
अलंकार - झंकार में, गायब केशव दास।।
विरहन को न सताइए, बहुत लगेगा पाप।
आग लगाओ मत इसे, जलती अपने आप।।
*मेघालय
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