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मैं गीत सुनाऊँ  सावन के 



✍️डॉ वर्षा सिंह
घटा काली छाई ,बरखा रानी आई 
करे बूँद बूँद झंकार रे 
मैं गीत सुनाऊँ  सावन के 


सावन में तो छँटा अनोखी इंद्रधनुष दिखलाए,
मोर, पपिहा ,दादुर, चिड़िया, कोयल तान सुनाए,
रे सावन में तान सुनाए
चहुँ ओर है छाई ,देखो नई तरुणाई
किया धरती ने श्रृंगार रे 
मैं गीत सुनाऊँ सावन के 


गजरा ,चूड़ी, पायल पहनी और सजाई बिंदिया,
तीज में झूले झूले रही हैं, मिलकर सारी सखियाँ,
रे सावन में सारी सखियाँ
चल रही पुरबाई ,देखो मैं बलखाई 
सखी मिल के गायें मल्हार रे
मैं गीत  सुनाऊँ सावन के 


माह निगोड़ा सावन आया पिया नहीं पर आए
नाम पिया का लेकर मुझको नंदी भाभी सताए,
रे सावन भी आग लगाए
रुत मिलने की आई कहाँ गया हरजाई 
मैं थक गई राह निहार के
मैं गीत सुनाऊँ सावन के

*मुंबई


 


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