✍️रोहित ठाकुर
समय की गाँठ खोल कर
मैं घर लौट रहा हूँ
मैं लौटने भर को
नहीं लौट रहा हूँ
मैं लौट रहा हूँ
नमक के साथ
उन्माद के साथ नहीं
मैं बारिश से बचा कर ला रहा हूँ
घर की औरतों के लिये साड़ियाँ
ठूंठ पेड़ के लिये हरापन
लेकर मैं लौट रहा हूँ
मैं लौट रहा हूँ
घर को निहारते हुए खड़े रहने के लिये
मैं तुम्हारी आवाज
सुनने के लिये लौट रहा हूँ ।
*कंकड़बाग़ ,पटना, बिहार
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