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कई अरमान और कई सपने






*अतुल पाठक

 

कई अरमान और कई सपने

दिल में बसते हैं अपने

 

तलाश मुझे हमसाये की

हमदर्द नहीं कोई अपने

 

ख़ुशनुमा ज़िंदगी किसको नहीं प्यारी

पर होते कहाँ पूरे सपने

 

जिसको देखो वही परेशान है

ज़िंदगी जैसे हो रही वीरान है

 

किसकी क़िस्मत कब रंग लाए

वही जाने जिसके खुल रहे भाग्य अपने

 

मुद्दतों बाद यह समझ आया है

भीड़ में नहीं हैं मेरे अपने

 

सबको सुकून की तलाश यही है

दिल की बस इक आस यही है

 

ये जुदा कभी न हमसे होते

दुख पीड़ा दर्द घर हैं अपने

 

कई अरमान और कई सपने

दिल में बसते हैं अपने

 

*हाथरस(उ.प्र.)


 




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