✍️रविकान्त सनाढ्य
तुर्रा औ कलंगी खूब झलकारो मारै सीस ,
वेस केसरी की सोभा महा छविमान है l
दूलह बने से ओप रहे होे कन्हाई आप
रासधारी हमें तो पै बड़ो़ अभिमान है l
एक ही अकेलो तू तो रसिया छबीलो छैल,
सबसे अलग तेरी मतवाली शान है l
कहै रविकंत तू है दिल को लुटेरो बड़़ो,
चैन छीन लेवै कैसी अपनाई बान है ll
देवदूत पुष्पवृष्टि कर रहे आप पर ,
गजों का भी अभिषेक बढ़ा रहा शान है ।
फुलकारी आजू -बाजू सोह रही रंगमय ,
चाँदनी का दो --दो चन्द्र करैं आह्वान हैं ।
लाल, लाल पिछवाई अरुणिमा लसत है ,
पीत बाने उदै हुओ जैसे आज भान है ।
कर में गुलाब स्वेत जम रह्यो खूब देखो ,
खिले हैं कमल यहै खास पहचान है ।।
ललन लहरदार वेस धरि लीनो आज
मुकुट गुलाब सों सजीलो शानदार है l
आभरण स्वर्ण औ रजत के हैं मनोहारी,
मणिमाल पुष्पमाल बनी जानदार है l
केसर- कस्तूरी को तिलक तेरे भाल सोहै,
हीरे की तो आभ प्यारै अति दमदार है ।
जगत में साँवरो ही सेठ एक देख्यो मैंने
जग है तिहारै बल, तू ही मालदार है ।
*भीलवाड़ा
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