*डॉ अवधेश कुमार अवध
हमें प्यार में आजमाने लगे हैं,
वो सूरत से सीरत छुपाने लगे हैं।
गले लग हमारे कहे कान में वो,
अदावत खुशी से भुलाने लगे हैं।
छुरी में दिखायी दिए दाग खूँ के,
लबों की ललाई बताने लगे हैं।
बगीचों में शिरकत बढ़ी आज उनकी,
भ्रमर बन कली को लुभाने लगे हैं।
अवध प्यारी बातों में फिर से न आना,
हिना में लहू अब मिलाने लगे हैं।
*मेघालय
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