✍️अशोक 'आनन'
गरजें - बरसें-
घटाएं सावन की ।
पिया गए परदेश -
हमारे ।
कैसे -
विरह रात गुज़ारें ?
आस पूर्ण कब होगी -
मन की ?
हम हैं -
नदिया के दो किनारे ।
मिले कभी न -
कोशिश कर हारे ।
कब बांचोगे तुम -
भाव नयन के ?
हर बांध टूट चुका -
सब्र का ।
गुज़र चुका मधुमास -
उम्र का ।
भली लगी अब -
सुधि सजन की ।
कभी लौट आता है -
वक़्त ।
शिलाएं पिघल जाती हैं जब -
सख़्त ।
सच हो जाती है जब -
बात सपन की ।
*मक्सी,जिला - शाजापुर ( म.प्र.)
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