*शिवकुमार दुबे
बस खात्मा समझो
जब बेईमानी धूर्तता
का तालमेल हो जाता है
तब उपलब्धियों का ताना
बाना बुन लिया जाता है
बेईमानी और ईमानदारी
में ज्यादा फर्क नही होता
बेईमानी ज्यादा होती खुश
किसी को मूर्ख बनाकर
किसी को धोखा देकर
किसी का काल हरण कर
बहुत उन्नत खीर पूड़ी खाती है
बेईमानी इसका स्वाद जिसे
लगा वो भूलकर मानवता
केवल शोषण को अपना हथियार
बना केवल भौतिक जीवन जीकर
ईमानदारी को ठोकरे मारता है
ईमानदारी केवल किताबों में अभी है
जीवित जिसे अपनो पर उतरना बाकी है
*इंदौर म.प्र.
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