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बच्चों का बचपन छीन रहा है मोबाइल



*नवीन गौतम

मोबाइल बच्चों का बचपन छीन रहा है। आजकल के बच्चे ऐसे खेल खेलना पसन्द ही नहीं करते जिसमें शारीरिक परिश्रम हो । मोबाइल की लत बच्चों पर इस कदर हावी हो रही है कि बच्चे इसके लिए कुछ भी करने के लिए तैयार रहते हैं और थोड़ी देर नहीं बल्कि दिनभर ही लगे रहते हैं । अगर आपका बच्चा भी इसी राह पर आगे बढ़ रहा है तो आपके लिए खतरे की घंटी है क्योंकि मोबाइल आपके बच्चे से उसका बचपन छीन रहा है ।

मोबाइल की लत एक बार फिर सुर्खियों में है। हरियाणा में 9 साल के एक बच्चे को इसकी इतनी बुरी लत थी कि उसने स्मार्टफोन छीने जाने की वजह से अपना हाथ काटने की कोशिश की। मोबाइल की लत का ये इकलौता मामला नहीं है। देश भर में बच्चे और युवा बड़ी संख्या में मोबाइल की लत का शिकार हो रहे हैं।

12 साल का अविनाश मोबाइल के बिना एक पल नहीं रह सकता। उससे अगर मोबाइल छीन लिया जाए तो वो गुस्से में आ जाता है। दूसरी ओर, अविनाश का कहना है कि उसे मोबाइल गेम पसंद हैं और उसके मम्मी-पापा अक्सर तब मोबाइल छीन लेते हैं जब वो जीतने वाला होता है।

अविनाश कई बार मोबाइल ऐसी जगह छुपा देता है जिसे उसके मां बाप ढूंढ़ ना सकें। तो क्या सूर्यांश को मोबाइल की लत लग चुकी है। ऐसा ही एडिक्शन है भोपाल यूनिवर्सिटी की प्रिया को। उसे व्हाट्सऐप की ऐसी लत है कि वो पूरी रात जगी रह जाती है। अब वह अस्पताल में काउंसलिंग ले रही हैं।

मोबाइल की लत इस कदर हावी होती जा रही है कि बच्चे आपराधिक भी होते जा रहे हैं और गलत कदम उठा रहे हैं । अभी हाल ही में ग्रेटर नोएडा में एक 16 वर्षीय लड़के ने अपनी माँ और बहन की हत्या कर दी क्योंकि बहन ने शिकायत कर दी थी कि भाई दिन भर मोबाइल फोन पर खतरनाक गेम खेलता रहता है और इसलिए माँ ने बेटे की पिटाई की, उसे डाँटा और उसका मोबाइल फोन ले लिया। मोबाइल पर मारधाड़ वाले गेम खेलते रहने के आदी लड़के का गुस्सा इससे बढ़ गया और उसने अपनी माँ और बहन की हत्या कर दी और घर से भाग गया। इसी तरह कुछ महीनों पहले कोटा में एक 16 वर्षीय किशोर ने फाँसी लगाकर आत्महत्या कर ली । पुलिस की जाँच पड़ताल में पता चला कि बच्चे को पबजी गेम खेलने की लत थी और दिनभर मोबाइल में गेम खेलता रहता था । जब घरवालों ने मोबाइल छीन लिया और देने से मना कर दिया तो यह गलत कदम उठा लिया ।

मोबाइल और साइबर एडिक्शन अब एक गंभीर समस्या बनती जा रही है जो हमारी दिनचर्या पर बुरा असर डाल रही है। कई मामलों में तो ये जिंदगी को भी खतरे में डाल रही है। मोबाइल अब सिर्फ फोन या मैसेज करने तक ही सीमित नहीं रहा है। ना जाने कितने ही तरह के ऐप्स, व्हाट्सएप, और गेम्स हमें दिन भर व्यस्त रखते हैं । लेकिन अगर मोबाइल के बिना आपको बैचैनी होती है तो आपके लिए चिंता की बात है। वहीं मोबाइल एडिक्शन में सबसे बड़ी समस्या इसकी पहचान को लेकर होती है। आखिर कैसे पता चले कि मोबाइल आपकी जरूरत भर है या एक लत बन गई है।

स्मार्टफोन हमारी जिंदगी में इस कदर शामिल हो चुका है कि दफ्तर हो या घर, हर वक्त वो हमारे हाथ में ही रहता है। छोटी-छोटी उम्र के बच्चे तक इसके आदी होते जा रहे हैं। व्हाट्सएप, फेसबुक, गेम्स सब कुछ स्मार्टफोन पर होने की वजह से युवाओं में इसकी आदत अब धीरे-धीरे लत में तब्दील होती जा रही है। तो फिर कैसे पता चले कि हम और हमारे बच्चे मोबाइल एडिक्ट बन रहे हैं ।

आजकल बच्चों को यदि अपने विषय से सम्बंधित किसी प्रश्न को समझने में दिक्कत आ रही है तो वह गूगल का सहारा लेकर उत्तर खोजने की कोशिश करता है । लेकिन यह गलत भी नहीं है पर अब यह बच्चों की आदत बन चुकी है । वे किताबों में ढूँढकर पढ़ने की जगह मोबाइल के आदी होते जा रहे हैं जो उचित नहीं है ।

देश में निम्हांस, एआईआईएमएस और सर गंगाराम अस्पताल जैसे संस्थानों में मोबाइल की लत के शिकार लोगों के इलाज के लिए खास क्लीनिक हैं। और, यहां आने वाले मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है। मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि मां-बाप को मोबाइल के लती बच्चों के साथ क्वालिटी टाइम बिताना चाहिए। बच्चों को गैजेट्स से दूर रखना चाहिए। कम से कम एक वक्त का खाना अपने बच्चों के साथ खाना चाहिए। मोबाइल और गैजेट्स की लत हटाने के लिए डिजिटल डिटॉक्स की मदद भी ले सकते हैं, यानी कुछ दिनों तक मोबाइल और इंटरनेट से छुट्टी।

डिजिटल डिटॉक्स का एक बड़ा फायदा ये है कि छुट्टियां का पूरा मजा आप असली दुनिया में उठाते हैं, मोबाइल की आभाषी दुनिया में नहीं।  मोबाइल की लत मिटाने के लिए उससे गैर-जरूरी नोटिफिकेशन हटाना भी बेहतर उपाय है। और, सबसे अच्छा तो यही है कि परिवार के साथ ज्यादा समय बातचीत और खेलकूद में बिताया जाए।

 

*नयागाँव,कोटा - राजस्थान

 


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