*अशोक 'आनन'
मगरे पर आकर -
बोले काग ।
ऐसे कहां हमारे भाग ?
कच्चा घर -
टूटा खपरैल ।
जीना , है न -
बच्चों का खेल ।
बुझ जाए -
पेटों की आग ।
ऐसे कहां हमारे भाग ?
थिगड़ैलों से -
तन कैसे ढाॅंकें ?
उनमें से अब -
यौवन झाॅंके ।
चुनरी में -
न लागे दाग़ ।
ऐसे कहां हमारे भाग ?
झांके घर की -
हड्डी - पसली ।
घर से सपनों की -
अर्थी निकली ।
डसें कभी न -
दुर्दिन के नाग ।
ऐसे कहां हमारे भाग ?
भूख़ - पर्व
यों बीते हैं ।
आंसू पी - पी -
हम जीते हैं ।
हमें छोड़ दे -
मौसम घाघ ।
ऐसे कहां हमारे भाग ?
चौंका - चूल्हा -
बद से बद्तर ।
रीता -
आटे का कनस्तर ।
फ़िर उजडें न -
खुशियों के बाग ।
ऐसे कहां हमारे भाग ?
*मक्सी ,जिला - शाजापुर ( म.प्र.)
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