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अच्छा लगता है



*सविता दास सवि

 

सावन में थोड़ी

बावरी बनना 

अच्छा लगता है

 

पिस-पिस जाती

फिर आस मन की

तेरे उखड़े-उखड़े

स्वभाव से पिया

यूँ  पिसकर भी

मेहंदी सम 

महकना

अच्छा लगता है!

 

मन की सतह

रेगिस्तान बनी 

जेठ-आषाढ़ में

तपती रह गई

इच्छाएँ सारी

फिर पावस में

हरे होंगे 

घाव विरह के

इस टीस को 

फिर से सहना

अच्छा लगता है!

 

सावन में थोड़ी

बावरी होना

अच्छा लगता है!

व्याकुल हैं बदरा

तेरे मन-आंगन में

बरसने को

तुम ही ना दिखते

आंखों में उजाला

लिए मेरी राह तकते

इस उपेक्षा में भी

तुम्हे निकट मानना

यह भाव भी 

अच्छा लगता है!

 

सारे जग की 

चिंता तुमको

ना देखी कुम्हलाई

काया मेरी

जतन सारे बेकार

तुम्हारा सानिध्य

पाने का 

कमी है यह 

जीवन की

फिर भी तुममें 

संपूर्णता देखना

प्रेम अगर यही है

तो प्रेम अच्छा लगता है!

 

सावन में थोड़ी

बावरी बनना

अच्छा लगता है! 

*तेजपुर,शोणितपुर,असम

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