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विश्ववाणी का सारस्वत अनुष्ठान सृजन  पर्व



जबलपुर। संस्कारधानी जबलपुर की प्रतिष्ठित संस्था विश्ववाणी हिंदी संस्थान अभियान जबलपुर के 29 वें दैनंदिन सारस्वत अनुष्ठान : सृजन पर्व के अंतर्गत द्वारबंदी (लोकडाउन) में ढील के बाद उपजी परिस्थितियों पर व्यापक विमर्श किया गया। संस्था तथा कार्यक्रम के संयोजक आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' ने विषय प्रवर्तन करते हुए कोरोना के कारण महाशक्तियों के दंभ भंग होने का संकेत करते हुए परिवर्तित परिस्थितियों में आत्मानुशासन को ही आत्म रक्षा का प्रभावी रक्षा-कवच बताया। 


मन कौ मैल बचै नहीं नैकऊ, ऐसी मति दै माँ शारद!
बिसरे गैल न छंद, छंद में लय-गति-यति दै माँ शारद!
कर वंदन अभिनंदन पूजन, मैया गुन गाकर जैहौं मैया-
बुद्धिदायिनी हंसवाहिनी सद्गति दै दै माँ शारद! 


बृज भाषा में आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' द्वारा रचित उक्त शारद वंदना का सस्वर पाठ कर मीनाक्षी शर्मा जी ने वाहवाही पाई। इंजी. अरुण भटनागर ने द्वारबंदी पर प्रतिक्रिया करते हुए प्रतिरोध क्षमता की वृद्धि हेतु योग-प्राणायाम को अनिवार्य बताया। ग्वालियर से पधारी वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. संतोष शुक्ला ने कोरोना के बढ़ते प्रकोप के कारण द्वार बंदी के प्रतिबंधों को आवश्यक बताया।  संस्कारधानी जबलपुर में हिंदी के प्राध्यापक डॉ. अरुण शुक्ल ने द्वारबंदी प्रतिबंध शिथिल किये जाने पर महाविद्यालयों में विद्यार्थियों की उपस्थिति नगण्य होने की संभावना को इंगित करते हुए ऑनलाइन शिक्षण हेतु शिक्षकों और विद्यार्थियों दोनों को तैयार होने की आवश्यकता बताई। 


जपला, पलामू झारखण्ड से सहभागी डॉ. आलोकरंजन ने  द्वारबंदी के प्रतिबंध आंशिक शिथिल किये जाने पर कोविद के नए मामले लगातार बढ़ने की स्थिति में चिंता व्यक्त की, तथा कम से कम एक माह के लिए द्वारबंदी बढ़ाये जाने की आवश्यकता बताई। डॉ. अरविन्द श्रीवास्तव 'असीम' दतिया ने काव्य पाठ करते हुए चीन को कोरोना महामारी हेतु जिम्मेदार बताया। इंजी रमन श्रीवास्तव ने संक्रमण से बचाव के लिए द्वारबंदी के प्रतिबंध शिथिल किये जाने पर भी स्वेच्छा से प्रतिबंध अपनाते रहने को आवश्यक बताया। दमोह से सहभगिता कर रही मनोरमा रतले ने 'सावधानी हटी, दुर्घटना घटी' के सूत्र को अपनाने और सावधान रहने की सलाह देते हुए जीवन को पहले से अधिक आनंददाई होने की कामना की। 


टीकमगढ़ के ख्यात साहित्यकार राजीव नामदेव राना लिधौरी ने द्वारबंदी के कारण आर्थिक मंदी का उल्लेख करते हुए द्वारबंदी को हटाने को सर्वथा उचित बताते हुए दोहों का वाचन किया- 


जनता बेबस क्या करे, वह सचमुच लाचार  
खाने को दाना नहीं, लौट रहे घर हार


उद्घोषक डॉ. मुकुल तिवारी ने द्वारबंदी प्रतिबंध शिथिल होने से रोजमर्रा कमाने-खानेवालों की ज़िंदगी बचाने के लिए लॉकडाउन को आवश्यक बताया। किन्तु अर्थोपार्जन हेतु अवसर देने के लिए प्रतिबंधों के शिथिलीकरण को आवश्यक बताया। जपला झारखण्ड से सम्मिलित हो रही रेखा सिंह प्राध्यापक ने काव्य पाठ करते हुए 'पतझड़ में झरते पत्तों की तुलना कोविद से मर रहे रोगियों से करते हुए, लोकडाउन के बाद पेड़ों में फूटते पत्तों के समान मानव को नव अवसर मिलने से की। सपना सराफ ने द्वारबंदी के कारण पर्यावरणीय सुधारों की चर्चा करते हुए, अब आर्थिक गतिविधियों के उन्नयन हेतु प्रतिबंध शिथिल किये जाने को आवश्यक बताया। मीनाक्षी शर्मा 'तारिका' ने  लोकडाउन को आपात व्यवस्था निरूपित करते हुए, कोविद के निरंतर बढ़ने के आंकड़े देते हुए, अधिक सावधानी को आवश्यक बताया तथा इन परिस्थितियों में जीना सीखने को एकमात्र राह बताया। नरेंद्र कुमार शर्मा 'गोपाल' ने षट्पदी में अपने विचार व्यक्त किये- 


धैर्य का अनुपालन, सख्ती और सजगता से ,
लोक डाऊन छूट जोड़ें जरूरत की विवशता से।
कोरोना के साथ जीना आदत सी बनानी हैं,
निडरता से नियम बद्ध  इस पर जीत पानी है ।
आओ एक बार पुनः मानवता मनानी है। 
भारतीय जिजीविषा विश्व को दिखानी है।


दमोह की लघुकथाकार शिक्षिका बबीता चौबे शक्ति ने कविता प्रस्तुत करते हुए 'सीख गया है अब अभिमन्यु / चक्रव्यूह को भेदना और छेदना' में प्रतीकों के माध्यम से अपनी बात कही। विमर्श का महत्वपूर्ण चिंतन प्रस्तुत करते हुए युवा चिंतक सारांश गौतम ने 'कहाँ छिप गया अब ईश मेरा / जो ध्यान सभी का रखता है?' आदि प्रश्न उठाते हुए समाधान अपने प्रयास को बताया। सिरोही राजस्थान के शिक्षाविद छगनलाल गर्ग 'विज्ञ' ने ग़ज़ल 'और देखो ज़ख्म कोरोना कहानी दे गया' प्रस्तुत कर कोरोना की व्यथा-कथा बयां की। चंदा देवी स्वर्णकार ने लोक डाउन प्रतिबंध शिथिल होते ही भीड़ लगाने की प्रवृत्ति पर हास्यपरक कविता प्रस्तुत कर यथा देव तथा पूजा को उपाय बताया तथा चीन को इस महामारी हेतु लानत दी। गायिका माधुरी मिश्रा ने लंबे लोकडाउन के कारण मध्यम और निम्न वर्ग के समक्ष उत्पन्न बेरोजगारी के कारण प्रतिबंधों को शिथिल करना उचित निरूपित किया।  भिंड से आई मनोरमा जैन पाखी ने लोकडाउन को जरूरी बताते हुए, इस कारण उत्पन्न मुनाफाखोरी की मनोवृत्ति की निंदा की। 


विचार विमर्श को समापन की ओर ले जाते हुए संयोजक आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' ने हसी-व्यंग्य रचनाओं के माध्यम से गंभीर वातावरण को हल्का किया -


कोरोना की जयकार करो
तुम नहीं तनिक भी कभी डरो
घरवाले हो घर से बाहर
तुम रहे भटकते सदा सखे!
घरवाली का कब्ज़ा घर पर
तुम रहे अटकते सदा सखे!
जीवन में पहली बार मिला
अवसर घर में तुम रह पाओ
घरवाली की तारीफ़ करो
अवसर पाकर सत्कार करो
तुम नहीं तनिक भी कभी डरो
कोरोना की जयकार करो।


उन्होंने कोरोना पर रैप सांग भी प्रस्तुत किया। पाहुना की आसंदी सुशोभित कर रहे भोपालवासी साहित्यकार अरुण श्रीवास्तव 'अर्णव' ने व्यक्तिगत सुरक्षा के प्रावधानों को जीवन शैली के रूप में अपनाने और योग तथा प्राकृतिक आहार को सम्मिलित करना आवश्यक बताते हुए दोहे प्रस्तुत किये। विमर्श को पूर्णता की ओर ले जाते हुए मुखिया इंजीनियर अरुण भटनागर ने विषय की प्रासंगिकता और उपयोगिता को असंदिग्ध बताते हुए संयोजक आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' के प्रति विशेष आभार व्यक्त किया।


 


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