*प्रदीप ध्रुव भोपाली
ऊ नहीं उर्दू का जाने वो ग़ज़ल है लिख रहा।
वाट्सप से कुछ उठा शैरो हज़ल है लिख रहा।
फेसबुक से रोज़ मिल जाए मसाला ख़ोज वो,
बेहया गैरत बिना कैसी पहल है लिख रहा।
मंच माफ़िक ले मसाला आनलाइन खूब वो,
मंच पढ़ कर लौट कहता वो फ़सल है लिख रहा।
चल गई जब शायरी उस्ताद मंचों का हुआ,
फिर कहा उसने कि वो ताज़ोमहल है लिख रहा।
पेट में रोटी भरा बटुआ बना वो नामवर,
तब पता फिर ये चला अल्ला फ़ज़ल है लिख रहा।
आशिक़ी में तर-बतर होने हुआ ध्रुव दिल मगर,
तो बताया आजकल आंखें कमल हैं लिख रहा।
*भोपाल मध्यप्रदेश
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