*पुष्पा सिंघी
समझे कौन
वसुन्धरा की पीर
पसरा मौन !
वृक्षारोपण
प्रकृति-संतुलन
सुखी जीवन !
मास्क का टास्क
कहाँ होगा पर्याप्त
जीने के लिए !
क्यूँ एक दिन
पर्यावरण-राग
चेत सयाने !
चूँ चूँ करती
ठूँठ पे बैठी चिड़ी
बादल छाए !
कंक्रीट वन
विषैला पानी-हवा
मेज पे दवा !
ढूँढता छाँव
थका लकड़हारा
घायल पाँव !
आँखों में पानी
नदी खुद प्यासी है
युगों-युगों से !
पुष्पित मन
प्रकृति-संरक्षण
लक्ष्य वरण !
संन्यासी सूर्य
पीले वस्त्र पहने
भक्त निहारे !
पुष्पा सिंघी , कटक
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