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शहर अब शहर न रहा



*अशोक ' आनन '

 

शहर -

अब शहर न रहा ।

चैन -

रत्ती  भर  न रहा ।

 

भीड़ भरे शहर में -

पसर गया सन्नाटा ।

भूल गया आदमी भी -

सैर और सपाटा ।

 

सुहाना -

सफ़र     न    रहा ।

 

छांव   ने   भी -

समेट  लिया  आंचल ।

सांझ का भी -

धुल   गया   काजल ।

 

सुखद -

अब पहर  न रहा ।

 

धूप ने भी सिर पर -

उठा रखा आसमान ।

हवाओं ने भी -

मचा रखा घमासान ।

 

आदमी -

ख़बर    न     रहा ।

 

सुबह , दोपहर -

शाम सूनी रही ।

पीड़ा जीने की -

कई गुनी रही ।

 

हरा -

अब शज़र न रहा ।

*मक्सी,जिला -शाजापुर ( म.प्र.)

 


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