Subscribe Us

परिभाषित आँसू होगा तो प्रेम पुरस्कृत हो जाएगा



*संदीप मिश्र 'सरस'


कई बार मेरा मन मचला पीड़ा को गीतों में ढालूँ,
फिर सोचा यदि छलक गया तो प्रेम तिरस्कृत हो जाएगा। 
 
अपनेपन का स्वाँग रचाकर कोई मेरे द्वारे आए।
आँखों के दरवाजे कोई अनचीन्हा कुंडी खटकाए।
मेरे आँसू पीना चाहे कोई अधर बढ़ा कर अपने,
फिर कोई कोरे नयनों को सतरंगी सपने दे जाए।


मैं मन की अनब्याही पीड़ा की नीलामी क्यों होने दूँ,
सपनों की सौदेबाजी में प्रेम बहिष्कृत हो जाएगा।।


प्रीत प्रात की सीता जैसी, पीर राधिका शाम प्रतिष्ठित।
अधर मौन हैं राम सरीखे, अश्रु मुखर घनश्याम प्रतिष्ठित।
जब जब जीवन की वंशी पर साँसो के कुछ स्वर गूँजे हैं,
तब तब मन आँचल पर पाया है मीरा का नाम प्रतिष्ठित।


क्यों छेडूँ पीड़ा की वीणा आँसू की भाषा क्यों बाँचूं
परिभाषित आँसू होगा तो प्रेम पुरस्कृत हो जाएगा।।


*शंकरगंज,पोस्ट-बिसवां,जिला-सीतापुर(उ प्र)


 


अपने विचार/रचना आप भी हमें मेल कर सकते है- shabdpravah.ujjain@gmail.com पर।


साहित्य, कला, संस्कृति और समाज से जुड़ी लेख/रचनाएँ/समाचार अब नये वेब पोर्टल  शाश्वत सृजन पर देखेhttp://shashwatsrijan.com


यूटूयुब चैनल देखें और सब्सक्राइब करे- https://www.youtube.com/channel/UCpRyX9VM7WEY39QytlBjZiw 


एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ