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ख़ूबसूरत पलों की एक सेल्फ़ी



*डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'
आओ बैठो 
मेरे पास
बातें करें जी भर
यहाँ-वहाँ की
हम दोनों।


आओ बैठो 
कुछ देर
साथ-साथ जी लें
सुकून के कुछ पल
तुम अपनी सुनाओ
मैं अपनी।


दिनभर की आपाधापी में 
आज तुम कहाँ हँसी जी भर
मैं सोच रहा था
जब तुम आओगी
कहूँगा-
तुम्हारे लिए तोड़ लाऊँ
गगन से सितारे
और तुम कहोगी 
हर बार की तरह
पागल!
धरती पर ही रहो
यहीं मेरे पास
मत जाओ कहीं
नहीं चाहिए मुझे सितारे-वितारे!
लो तुम्हारे चेहरे पर आ गयी
नैसर्गिक हँसी,
खिलखिलाने लगी तुम।


ए सुनो
आओ इन ख़ूबसूरत पलों की 
ले लें एक सेल्फ़ी
तुम हँसो जी भर!


*फतेहपुर (उ.प्र.)


 


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