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जिंदगी रंज-ओ-गम की निशानी पे चलती है



*पूजा झा


जिंदगी रंज-ओ-गम की
निशानी पे चलती है
ऐसे किसी को मोह्हब्बत 
भी कहाँ मिलती है!


पाकर भी जमाने से
लाखों के सितम
भीड़ों में ज़नाज़े के
तन्हाई कहाँ दिखती है!!


मयस्सर नहीं होता 
किसी को कुछ भी
पाने की चाहत फिर भी
कहाँ मिटती है!!


ख़्वाबों के घरौंदों को
सजाता है जमाना
हक़ीक़त में उसकी 
तामील कहाँ होती है!!


चलते हैं  सितारों पर
हर वक़्त जो मुसाफ़िर
उनको वीराने में
सुकूँ भी कहाँ मिलती है!!!


*जंदाहा,हाजीपुर


 


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