*रविकान्त सनाढ्य
हिम्म्मत तो देखिए
इस पेड़ की !
काट दिया गया है बुरी तरह ,
पर सलाम है इसकी
अदम्य जिजीविषा को !
फूल उठीं हरी - हरी कोंपलें
फिर से,
उग आए इस पर फल !
जीवन साँस लेने लगा
फिर से !
हर समस्या का है हल ,
कुछ सीख ले ले मनुष्य ,
हिम्मत और पुरुषार्थ
विवेक और आशा ,
उद्यम और अभिलाषा
सभी गुण तो दिये हैं
तुम्हें परमात्मा ने !
फिर क्यों हो जाते हैं ,
पस्त तुम्हारे हौंसले ?
आत्मघात का विचार सर्वथा
बानी है !
आओ, कुछ सीख ले लो ,
तुम प्रकृति के क्रिया-कलापों से !
लहलहाते खेतों को देखो,
उपवन में मदमाती डालियों को,
उल्लास का अंकुर है उनमें !
आशा और अभिलाषा जगाओ,
स्वयं में फिर से !
*भीलवाड़ा ( राज.)
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