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घंटनाद



*निशा अमन झा 


नित्यानन्दकरी वराभयकरी सौन्दर्यरत्नाकरी

निर्धूताखिलघोरपावनकरी प्रत्यक्षमाहेश्वरी ।

प्रालेयाचलवंशपावनकरी काशीपुराधीश्वरी

भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी।।

 


मंदिर के पट खुलने की खबर के साथ ही उन घंटियों की ध्वनि मानों कानों में गुंजन करने लगी और साथ बचपन की संध्या आरती व प्रभात फेरी याद आ गई! वैसे तो घंटा तो आज भी ध्वनि देते हैं पर बचपन की यादों की मिठास उस मिठाई (खीर ) की तरह हैं जो खत्म होने पर ज्यादा याद आती है! जन्मभूमि इन्दौर होने के कारण लगाव होना वाजिब है! और बचपन मे दादी-नानी के साथ इन्दौर के मंदिर में जाना अक्सर होता था! कोई मेहमान आये तो खजराना, बड़ गणपति, जूनी इन्दौर गणेश जी, शनि मंदिर, इंद्रेश्वर, अन्नपूर्णा देवी के दर्शन आम बात थी! मुझे मंदिर में जाकर भगवान के पास का पेड़ा और सबसे ऊँचा घंटा दोनों बहुत पसंद रहें हैं! वैसे सभी बच्चों को मंदिर के घंटों को बार बार बजाने में जो मजा आता है वह आंनद भगवान के दर्शन में बिल्कुल भी नहीं आता ये बात भगवान को भी मालूम है! और बड़े होकर तो जाना आदत और सभ्यता, श्रद्धा मात्र है! इन्दौर का अन्नपूर्णा मंदिर जाने पर मंदिर के बाहर खड़ गगजराज जैसे मानों आये हुए अतिथियों का स्वागत कर रहें हो! और अंदर प्रवेश के साथ ही बाय हाथ में जो बावड़ी है उस लगे नल चौबीस घंटे श्रद्धालुओं को हाथ - पैर धोकर प्रवेश करने के लिए प्रेरित करता हैं! और बस लो आ फिर क्या अब रेलिंग पर चढों उतरो, उतरो चढों जब तक सब दर्शन करते हैं हम बच्चे घंटा वादन करते हैं! सच बहुत मजा आता था! पर, अब बच्चे ऐसा नहीं कर सकेंगे! उन्हें जरूर यह बात समझनी हो! आवश्यक है! या फिर कुछ समय के लिए घंटों को सिर्फ मंदिर व्यवस्थापक तक ही सीमित रहने दिया जाए।


*जयपुर राजस्थान

 


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