*अशोक 'आनन'
घर में
खड़ी हो गई -
एक दीवार और ।
धूप  ,  चूल्हे    तक -
अब आ  नहीं  पाएगी ।
व्यथा  दहलीज भी -
अब कह नहीं पाएगी ।
अंधेरा खड़ा
बन -
एक साहूकार और ।
मकड़जाल तक  भी  आए -
मेरे        हिस्से        में ।
शेष    बचा   न   कुछ  -
राम - लखन के किस्से में ?
बीच छोड़ गया
डोली -
एक कहार और ।
किलकारियां कर सकीं न -
देहरियां      पार ।
अचारों  में  भी  लग  गई -
फंफूदी इस बार ।
गिद्ध - दृष्टि 
अपनों की -
एक स्वीकार और ।
घरों  में  रोज़  बंट   रहीं  -
मां    की    कथरियां ।
अपनों को अब बंद हुए -
द्वार और खिड़कियां ।
ज़िंदगी में
स्वप्न का -
एक मज़ार और ।
घरों  में सूख गईं -
रिश्तों   की   तुलसियां ।
हृदय में उग आईं -
स्वार्थ की नागफनियां ।
सोचता हूं
निभा लूं -
एक किरदार और ।
मक्सी जिला - शाजापुर (म. प्र.)
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