*बलजीत सिंह बेनाम
बाम पर आपने ज़ुल्फों को खुला रक्खा है
क्यों सनम चैन ज़माने का उड़ा रक्खा है
आग दिल की कभी बुझ जाए अगर तो क्या हो?
बेसबब ही नहीं ज़ख्मों को हरा रक्खा है
एक सूरज की तमन्ना है मुझे बरसों से
किसने सूरज मेरे हिस्से का छुपा रक्खा है
जेल में बैठ के टी.वी. का मज़ा लेता है
एक मज़लूम का ख़ूँ जिसने बहा रक्खा है
*हाँसी
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