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बाल श्रम



* प्रीति शर्मा 'असीम'

 

 मेहनत कर करता गुजारा।

 जीवन का कर्म एक सहारा।

 किस्मत ने किया जिसे वरण ,

 बाल -श्रम की व्यथा मर्म -मर्म ।

 

हर कोई है दुत्कार जाता ।

कोई प्यार से कभी पास बुलाता।

छोटे हाथों के बड़े कर्म ,

बाल -श्रम की व्यथा शर्म -शर्म ।

 

जीवन के संघर्ष से लड़ता।

अपने फर्जो को पूरा करता ।

बचपन खेल के बस रहे भरम।

बाल -श्रम उन्मूलन हो धर्म -धर्म।

*नालागढ़ हिमाचल प्रदेश

 


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