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बाबा का बिक गया मकान



              

*अशोक ' आनन'

 

आज नहीं -

तो कल बिकना है ।

बाबा का बिक गया मकान ।

 

चार    लड़के   ,   चारों    अलग -

कोई न रहता उनके साथ ।

खेती - बाड़ी भी अलग - अलग -

कोई  नहीं  बंटाता   हाथ ।

 

खटपट -

उनसे होती रहती ।

बहुएं मिलकर भरतीं कान ।

 

अपने   चौके  ,  अपने   चूल्हे -

सबके  अपने  तुलसी - चौरे ।

वर्षों   से   बिन   बोले    बच्चे -

मिलने को  ले  हृदय हिलोरें ।

 

देख बड़ों को -

अब बच्चे भी रहते ।

दिन भर अपनी भौंहें तान ।

 

बड़ी  जतन  से  जिन्हें  उछेरा -

जड़  उन्हींने  ,  उनकी  काटी ।

घर -  ज़मीन  की बात नहीं है -

मां  तक  उन्होंने अपनी बांटी ।

 

कैसे -

उन्हें अब वे क्षमा करें ?

किया जिन्होंने बस अपमान ।

 

बेच - बाचकर अपने घर  को -

जाओ  बाबा  , वृद्ध - आश्रम ।

यही आपकी नियति अब  है -

आप ज़रा  भी  करो  न   ग़म ।

 

व्यर्थ है -

अब ये आंसू बहाना ।

ओस हुई अब आपको पाषाण ।

*मक्सी,जिला - शाजापुर ( म. प्र.)

 


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