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अंतरंगता



 

*अशोक ' आनन ' 

 

माचिसों से 

बारूदों की अंतरंगता -

ठीक नहीं लगती ।

 

समंदर सद्भाव का

अब लावे - सा -

उबल रहा ।

मौसम मुस्कानों का 

मशीनगनों को  -

मचल रहा ।

 

शोलों से

हवाओं की अंतरंगता -

ठीक नहीं लगती ।

 

सद्मावना के दीये भी

बुझकर -

उगलने लगे धुआं ।

आदमी को

ज़िंदगी लगने लगी -

मौत का कुआं ।

 

आंखों से

तिनकों की अंतरंगता -

ठीक नहीं लगती ।

 

सुबह से

रोज़ दिखते हैं वही -

घृणित चेहरे ।

अफ़सोस ! 

जिन्हें कर सके न नमन -

बहुतेरे ।

 

वसंत से

कौओं की अंतरंगता -

ठीक नहीं लगती ।

*मक्सी,जिला - शाजापुर ( म.प्र.)

 


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