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अभी ज़हर फिर खिला दिया क्यों



*प्रदीप ध्रुव भोपाली

ग़ुज़ार लम्हे भुला दिया क्यों।

अज़ीब सा ये सिला दिया क्यों।

 

खुशी मिली थी तबाह दिल को

खुशी ज़मीं में मिला दिया क्यों।

 

फ़रेब कर के मिला तुम्हें क्या

अज़ीब ग़ुल ये खिला दिया क्यों।

 

हजार कसमें किए थे वादे

मेरा उसे हक़ दिला दिया क्यों।

 

शुमार यारी रही भी अपनी

अभी ज़हर फिर खिला दिया क्यों।

*भोपाल मध्यप्रदेश

 


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