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5 जून को सम्पूर्ण क्रांति का शंखनाद किया था जेपी ने



छियालिस वर्ष पूर्व 5 जून के दिन ही महान स्वतन्त्रता सेनानी ,समाज सुधारक और राजनेता लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान मे उत्साहित और जोश से भरे विद्यार्थियों और लगभग 5 लाख लोंगों के बीच पहली बार सम्पूर्ण क्रांति का नारा दिया।

जयप्रकाश जी जिन्हें  प्यार से लोग जेपी भी बुलाते थे ,उनका भाषण पूर्ण सन्नाटे और शांति मे आरंभ हुआ । लाखों की संख्या मे लोग उन्हें ही सुनने आए थे । जेपी ने अपने भाषण मे प्रत्येक मुद्दे को रखा और अपने विचार प्रकट किए ।  वे  अपने डेढ़ घंटे के भाषण मे छात्र आंदोलन,देश की बिगड़ती स्थितियाँ, भ्रष्ट व्यवस्था, प्रशासन के निकम्मेपन ,बढ़ती हुई महंगाई ,बेरोजगारी की चर्चा की तथा सभी को आहवान करते हुए कहा : “यह क्रांति है मित्रों और सम्पूर्ण क्रांति है । यह कोई विधान सभा विघटन का आंदोलन नहीं है । यह तो मंजिल है जो रास्ते में है ,दूर जाना है ,बहुत दूर। “

सम्पूर्ण क्रांति के दो शब्द उपस्थित लोंगों के तन और मन दोनों मे उतेजना और जोस भरने के लिए काफी था । उसी समय लाखों को भीड़ ने आवाज़ लगाई “ लोकनायक जयप्रकाश नारायण जिंदाबाद “ और इस गूंज  से आकाश भी गुंजायमान हो उठा था । अब जयप्रकाश जी लोकनायक जयप्रकाश नारायण बन चुके । उन्होने कई बार दुहराया “ हमे सम्पूर्ण क्रांति चाहिए, इससे कम नहीं “।

लोकनायक ने अपनी सम्पूर्ण क्रांति की सात  भागों मे बांटा था (1) सामाजिक क्रांति (2) आर्थिक क्रांति (3) सामाजिक क्रांति (4) सांस्कृतिक क्रांति (5) बौद्धिक क्रांति  (6) शैक्षिक क्रांति (7) नैतिक तथा आध्यात्मिक क्रांति । यह विभाजन विवेचन की सुविधा के लिए है । वस्तुतः वे एक दूसरे से जुड़ी  हुई हैं । ये सातों मिलकर “सम्पूर्ण क्रांति” का इंद्रधनुष बनाती है । उनमें एक क्षेत्र को प्रभावित  करती है और सब मिलजुलकर मनुष्य को और समाज को बाहर से और भीतर से भी बदलती हैं । जेपी की मान्यता थी कि केवल बाहरी बदलाव से क्रांति संभव नहीं है । मनुष्य के भीतर जब तक परिवर्तन नहीं होगा तब तक कोई क्रांति सफल नहीं होगा। वस्तुतः उन्होने “क्रांति” कि सभी अवधारणा मे ही क्रांति कर दी ।अपनी क्रांतिकारी भाषण मे उपस्थित लाखों लोगों से जात-पात,तिलक दहेज और भेद भाव छोड़ने का भी संकल्प दिलवाया । फिर नारा गुंजा : “ जात-पात तोड़ दो,तिलक दहेज छोड़ दो । समाज के प्रवाह को नयी दिशा मे मोड दो “।

बिहार का आंदोलन अपने परवान पर पहुँच गया । पूरा बिहार आन्दोलन मय होकर धधक उठा था । इसकी चिंगारी देखते  ही देखते पूरे भारत मे फ़ैल गई । क्या किसान,क्या मजदूर,क्या छात्र ,क्या समाज का हर वर्ग जेपी के आंदोलन के पीछे हो चला । इधर , बिहार की  हालत दिन प्रतिदिन खस्ता होती जा रही थी । बिहार ही नहीं बल्कि पूरे देश में काँग्रेस सरकार प्रति रोष बढ़ता जा रहा था । बिहार का सीधे दिल्ली से संपर्क न होने के कारणवश सारी लड़ाई बिहार सरकार पर ही केन्द्रित हो गई । चारों ओर असंतोष ,भुखमरी ,अत्याचार ,रिश्वतख़ोरी तथा भ्रष्टाचार  व्याप्त हो चुका था । इस आंदोलन मे बिहार के सभी महाविद्यालय और विश्वविद्यालयों के छात्र कूद पड़े थे । छात्रों ने अपने आंदोलन को सुचारु ढंग से संचालन हेतु छात्र नेताओं कि एक संचालन समिति  तैयार की । छात्रों ने सभी सार्वजनिक मांगों के साथ साथ शिक्षा मे आमूल परिवर्तन करना अपनी मांगों मे जोड़ ली । इस बीच छात्रों की बैठक मे इस बात की भी आशंका व्यक्त की गई कि कहीं यह आंदोलन बिना किसी परिपक्व नेतृत्व के अभाव मे बीच मे ही कहीं खत्म न हो जाए ।  मीटिंग मे सर्वसम्मति से जयप्रकाश जी को आंदोलन का नेतृत्व करने हेतु राजी के लिए छात्रों का एक प्रतिनिधिमंडल बनाया गया । प्रतिनिधिमंडल के छात्र नेता जेपी से मिलने पहुचे । जेपी ने छात्रों कि बातों को बड़े ध्यानपूर्वक सुना । जेपी ने कहा कि आपके  आंदोलन को मेरा नैतिक समर्थन है । नेतृत्व कि हामी भरने के पूर्व उन्होने छात्रों के समक्ष कई शर्ते रखीं जिनमे आंदोलन अहिंसात्मक होना,उनकी पहली शर्त थी ।“ आंदोलन के संचालन के क्रम मे किसी प्रश्न पर अंतिम निर्णय लेने का अधिकार मेरे हाथ मे रहेगा , आप लोंगो  के साथ बैठकर विचार विमर्श करूंगा ,आपके सही विचारों  को मानने  के लिए तैयार भी रहूँगा लेकिन आपको अंतिम निर्णय मेरे हाथों मे छोड़ना होगा ।“ जयप्रकाश जी ने नेतृत्व का दायित्व तभी स्वीकार किया जब छात्र संघर्ष समिति के  नेताओं ने उनकी इस शर्त को स्वीकार किया ।

छात्र नेता जानते थे कि ये वही जयप्रकाश हैं जिनके नाम से ब्रिटिश सरकार भी काँपती थी । गुजरात के छात्र आंदोलन के नवनिर्माण आंदोलन का नेतृत्व किया था । जेपी का विचार,दर्शन और व्यक्तित्व बिलकुल अजूबा था । स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद दो ऐसे व्यक्तित्व और राजनेता हमेशा याद किए जाएंगे जिन्होने कभी कोई पद नहीं लिया । पहले महातमा गांधी और दूसरे जयप्रकाश नारायण थे। जेपी न केवल क्रांतिकारी थे बल्कि एक सशक्त विचार धारा थे । समाज के बदलाव के लिए हमेशा चिंतित रहते थे । समाज के  अंतिम व्यक्ति को मुख्य धारा में जोड़ने की ललक उनके विचार मे हमेशा परिलक्षित होती  थी । जेपी के विचार हमेशा हमारे देश में प्रासंगिक रहेंगे ।


*अजय कुमार सिन्हा

(लेखक बिहार विधान परिषद के अपर सचिव हैं) 

 


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