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विश्ववाणी हिंदी संस्थान द्वारा कला पर्व का आयोजन



जबलपुर । विश्ववाणी हिंदी संस्थान अभियान जबलपुर के 21 वे दैनंदिन सारस्वत अनुष्ठान  "पर्व कला - कला पर्व का श्री गणेश इंजी. उदय भान तिवारी द्वारा प्रस्तुत "हे शारद माँ! धुन में मेरी, अपनी कला निखार दो / बैठ आकंठ में आकर मैया, कर के कार सँवार दो" से हुआ।  मीनाक्षी शर्मा 'तारिका' ने आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' रचित हिंदी महिमा के दोहे  मधुर स्वर में  सुनकर श्रोताओं को मुग्ध कर दिया। ईशोपासना के पश्चात् कार्यक्रम की मुखिया संस्कृत-बुंदेली साहित्यकार शोधकर्त्री डॉ. सुमनलता श्रीवास्तव तथा पाहुना भारतीय रंगमंच की शिखर कलाकार साहित्यकार गीतिका वेदिका टीकमगढ़ का स्वागत शब्द गुच्छ और पुष्पगुच्छ से किया गया। विषय प्रवर्तन करते हुए आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' ने भारतीय संस्कृति में पर्व परंपरा को लोकमंगल से जोड़ते हुए उसे पुनर्जीवित करने की आवश्यकता प्रतिपादित की। सिरोही राजस्थान से पधारे वरिष्ठ साहित्यकार छगनलाल गर्ग 'विज्ञ' ने गणगौर पर्व संबंधी जानकारी दी। डॉ. सुमनलता श्रीवास्तव ने वट सावित्री व्रत कथा की सांगोपांग जानकारी प्रस्तुत की। सिहोरा महाविद्यालय में हिंदी की प्राध्यापक डॉ. अरुणा पांडे ने नागपंचमी पर्व के पर्यावरण से संबंध तथा कन्याओं को विवाहोपरांत मायके से जोड़े रखने की प्रथा बताया। चंद्रा स्वर्णकार ने अक्षय तीज पर्व से संबंधित कथाओं का वर्णन किया। दमोह से सम्मिलित हुईं बबीता चौबे ने दुर्गा पूजन माहात्म्य के साथ भगतें (देवी महिमा गीत) सुनाया। ग्वालियर निवासी डॉ. संतोष शुक्ला ने यम द्वितीया पर्व की कथा तथा महत्त्व बताया। 

हिंदी साहित्य के श्रेष्ठ-ज्येष्ठ साहित्यकार महाकवि भगवत दुबे ने रंगोत्सव होली को आनन्दोत्सव, मदनोत्सव और वसंतोत्सव का संयुक्त पर्व बताते हुए सामाजिक विसंगति पर रचित फाग "मची हुड़दंग सड़क पे दारुओं की अरे हाँ, करवा दई लेट बरात'' प्रस्तुत की। डॉ. मुकुल तिवारी ने देवउठनी एकादशी (गन्ना ग्यारस) व्रत संबंधी कथा सुनाते हुए जानकारी दी।  गुलाम गौस ने मुसलामानों के त्योहार ईद के रस्मो रिवाजों की जानकारी देतु हुए सांप्रदायिक सद्भाव की मिसाल पेश की। भारत सरकार की हिंदी सलाहकार समिति की सदस्य डॉ. राजलक्ष्मी शिवहरे ने पर्व माहात्म्य और भजन सुनाया। बुंदेली साहित्यकार परिषद् की अध्यक्ष लक्ष्मी शर्मा ने शिवरात्रि पर्व की कथा और माहात्म्य का वर्णन किया। इंजी अरुण भटनागर ने दक्षिण भारतीयों के प्रमुखपर्व ओणम से जुड़ी जानकारियां साझा कर राष्ट्रीय ऐक्य भाव को मजबूत किया।  भारती नरेश पाराशर ने क्रमश: लुप्त हो रही नर्मदे ब्राह्मणों में प्रचलित भाई दूज पर्व की जानकारी दी। बस्तर के विश्व विख्यात लोकपर्व कौंचा पर प्रकाश डाला रायपुर से सहभागी हो रही रजनी शर्मा ने। पानीपत से पधारी मंजरी शुक्ल ने नवरात्रि पर्व की राम-रावण युद्ध और पराशक्ति से संबंध की जीवंत व्याख्या की। 

जबलपुर के नामवर शायर यूनुस अदीब ने ईदुल रमजान के माह, नमाज़, रोजा, जकात के साथ ईदुल्फित्र को सहनशक्ति बढ़ाने वाला त्यौहार निरूपित किया। श्रावण माह में मनाया जानेवाले त्यौहार 'कजलिया' की कथा और प्रक्रिया बताई सिद्धेश्वरी सराफ 'शीलू' ने। डॉ. भावना दीक्षित  ने श्रावण माह की शुक्ल पंचमी को मनाई जा रही नाग पंचमी का धार्मिक और पर्यावरणीय महत्त्व बताया। साहित्यकार छाया सक्सेना ने दीवाली भाई दूज पर्व के अनुष्ठान पर प्रकाश डाला। पलामू झारखण्ड के डॉ. आलोकरंजन ने आदिवासियों के पर्व करमा की प्रथाओं और प्रकारों पर प्रकाश डाला। दमोह की मनोरमा रतले ने रामभक्ति परक भजन का सस्वर पाठ किया। भीलवाड़ा राजस्थान से तशरीफ़ लाई पुनीता भारद्वाज ने मांडना कला पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए कई मांडने प्रस्तुत किये। प्रीति मिश्रा ने जेठ माह में मनाये जाने वाले गंगा दशहरा  के महत्व, कारण और कथा पर प्रकाश डाला। ऋतुराज बसंत से जुड़े बसंत पंचमी के पर्व पर महती रोचक जानकारी दी इंजी रमन श्रीवास्तव ने। मधुर स्वर की स्वामिनी मीनाक्षी शर्मा 'तारिका' ने  भारत  नेपाल में मनाये जाते छठ पर्व संबंधी कथा, लोकाचार व  स्तुति की प्रामाणिक जानकारी दी। 

प्रसिद्ध साहित्यकार-संपादक छाया सक्सेना 'प्रभु' ने भाई दूज का त्यौहार मनाये जाने के मूल में वर्णित कथा, लोक परम्पराओं अलप ज्ञात अतूत गड़रिया की कथा, गोबर से बनाये जानेवाले गाँव, ७ भाई-बहिन के पुतले, भटकटैया के काँटे मुसल से कुचले जाने आदि की जानकारी दी। ख्यात आकाशवाणी कलाकार प्रभा विश्वकर्मा 'शील' ने अक्षय नवमी (आँवला नवमी) की जानकारी सरस बुंदेली बोली में दी। पर्वान्त में संयोजक आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' ने होली के पश्चात् बृज और बुन्देलखंड की फागों की झलक प्रस्तुत की। पर्व की पाहुन गीतिका वेदिका ने आयोजन की सार्थक बताते हुए कोरोना काल में इसकी सृजनात्मक भूमिका हेतु आयोजकों को आभार दिया। उन्होंने किन्नर विमर्श की चर्चा करते हुए अपनी एक कविता प्रस्तुत की। पर्व की मुखिया डॉ. सुमनलता श्रीवास्तव ने विविध विधाओं  के समायोजन को रचनाधर्मिता का पर्व निरूपित किया जिसमें ब्रह्मानंद सहोदर रसानंद प्रवाहित हो रहा है।  अनुष्ठान का समापन करते हुए आभार व्यक्त  इंजी अरुण भटनागर ने किया।

 

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