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श्रमिक की पुकार



*रमाकान्त चौधरी

किससे हम सब करें गुजारिश ,किसको दर्द सुनाया जाये।

हम इस देश के निर्माता हैं,हम ही क्यों प्रवासी कहलाये।

 

हमीं बनाते मंदिर-मस्जिद, हमीं बनाते हैं दफ्तर।

हमीं बनाते ऊंचे-ऊंचे , सुंदर ए. सी. वाले घर।

 

जिन्हें देश से प्यार नही, उनको एरोप्लेन सफर।

हमने देश को खून से सींचा, हमीं भटकते हैं दर-दर।

 

थाली खूब बजाई हमने ,दीपक खूब जलाया है।

तुम्ही बताओ आदेशों को कब हमने ठुकराया है।

 

फिर क्यों दोहरी नीति चल रहे, फिर क्यों करते हो अन्याय।

हम इस देश के निर्माता हैं,हम ही क्यों प्रवासी कहलाये।

 

जीने खातिर हमने केवल हासिल किया निवाला है।

माँ बनकर इस देश को हमने बच्चे जैसा पाला है।

 

स्वेदकणों को बहा बहा कर हमने पत्थर तोड़े हैं।

लम्बी लम्बी सड़क बनाकर शहर देश के जोड़े हैं।

 

जब भी फूटे मेरे छाले अपनी आंख भिगोती हैं।

खून से लथपथ पांव देखकर वे सड़कें भी रोती हैं।

 

अपना लेकर दर्द बताओ , किसके द्वारे जाया जाये।

हम इस देश के निर्माता हैं ,हम ही क्यों प्रवासी कहलाये।

 

भूखे प्यासे बच्चों का अब दर्द न देखा जाता है।

छोड़ वहीं पर देते हैं जो राहों में मर जाता है।

 

मेरी आँख का हर आँसू तकदीर पे अपनी रोता है।

तड़प तड़प कर मजदूर कोई जब अपनी जान को खोता है।

 

कर न सके तुम इंतजाम तक हमको घर पहुंचाने का।

दिखा रहे थे हमको सपना,अच्छे दिनों के आने का।

 

केवल भाषण से ही साहब अच्छे दिन न आयेंगे।

कोरोना से बचे रहे तो भूख से हम मर जायेंगे।

 

बच्चे जीवित रहें हमारे , कुछ तो साहब करो उपाय।

हम इस देश के निर्माता हैं ,  हम ही क्यों प्रवासी कहलाये।

*ग्राम -झाऊपुर, लन्दनपुर ग्रंट, जनपद लखीमपुर खीरी उप्र

 


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