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सीखते रहें, सिखाते रहें



*उमा पाटनी अवनि


उम्र तो वो सीढ़ियाँ हैं जहाँ

हर किसी को चढ़ना ही है

एक ये ही जगह है जहाँ पर आप 

बिना किसी मेहनत,

माथा-पच्ची के आगे जाते हैं

हाँ बात तो यहाँ से शुरू होती है

कि उम्र के हर एक पायदान पर

आपने अपने हुनर को किस तरह रगड़ा है

बहुत बार आपको ऐसे काम करने पड़े होंगे

जहाँ आप कभी जाना ही नहीं चाहते होंगे

कुछ लोगों की अज्ञानतावश आपको 

बहुत कुछ सहना भी पड़ा होगा

दोगलेबाज लोगों की फितरत ने

आपके अस्तित्व पर प्रहार भी किया होगा

पर इन सबके बीच आपने अपनी सार्थकता 

महसूस कराने हेतु क्या-क्या किया

क्या आप इन अनुभवों को बटोरते 

थक गये और रुक गये

नहीं ना आप बढ़ते चले गये

हालांकि द्वन्द्व जूझते हुए

बहुत सी बातों को जिम्मेदारियों 

और हालात  का खोखला नाम भी देना पड़ा 

पर इर्द-गिर्द ढकोसलों का

आवरण पहने कुछ गीदड़ों से

मुलाकातें भी हुई होंगी

कुछ ने आपके जुनून को व्यर्थ बातों से जोड़

अप्रत्यक्ष रूप से मूर्खों की भांति 

पीछे हटने को भी कहा होगा|

उनके बातों की अवहेलना ने

आपको निसन्देह क्षण भर के 

विचलित भी किया होगा|

पर आप डटे रहे, कर्म करते चले गये

जब सन्तुष्टि का प्रमाणपत्र आत्मा से मिला हो 

तो वहाँ तो कोई औपचारिकता की भी 

जरूरत नहीं पड़ती|

तो विचारों का द्वन्द्व समाप्त किया

"अवनि " ने फिर अपनी सार्थकता का प्रमाण दिया है

सीखते रहें, सिखाते रहें, 

और कुछ नेक लोगों के हृदय में भी जगह बनाते रहें|

 

*उमा पाटनी अवनि (उत्तराखण्ड )

 

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