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प्रीत रंग में है रँगी 



*डॉ. अनिता जैन 'विपुला'


प्रीत रंग में है रँगी 
अलबेली यह नार ।
ओढ़कर धानी चुनर, 
धर अंग अंग श्रृंगार।


रंग वह, रँगरेज भी
वही जीवन-संसार। 
भाव गह्वर में छिप
कर रही प्रणय अभिसार ।


स्नेह सुरभि से सुरभित
नयनों का पारावार
महका मन का आँगन
हो रही स्नेह बौछार ।


इश्क़ में डूबी निगाहें
उसकी तलबगार 
दोनों तरफ़ मौन 
बस निःशब्द प्यार ।


भीग भीगकर मन
मचल रहा बार बार 
प्रिय-रंग में रँग हो जाऊं
भव सागर के पार ।


प्रथम पहल रँगी हुई
प्रीत रंग का सार 
चढ़े न दूजा रंग फिर
यही आत्म श्रृंगार !!


*डॉ. अनिता जैन 'विपुला',उदयपुर


 


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