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प्रकृति से जुड़कर चलना सीखा







 


लॉकडाउन के दौरान लोगों के अनूठे अनुभव सामने आए। बचपन से जो लोग व्यस्त दिनचर्या में जीने के आदी हो गए थे, उनकी आदतों और आचरण में भारी बदलाव देखने को मिला। कुछ लोग बाहर घूमने, बाहर का भोजन करने और अपने वैभव प्रदर्शन करने की मानसिकता रखते हैं ,उन्हें अवश्य बेचैनी हुई । सादगी  से जीवन जीने वाले लोगों को कोई परेशानी नहीं हुई । सादा भोजन, प्रकृति प्रेमी, भगवत भक्ति में व्यस्त रहने वाले, योग और ध्यान करने वाले लोगों को  लॉकडाउन में सामान्य दिनों की तरह ही लगा। लेखक और साहित्यकारों ने मां सरस्वती की कृपा से रचनाएं, कविताएं, आलेख और पुस्तकें लिखने का कार्य किया। कला प्रेमियों ने घर पर रहकर अपनी कला से संबंधित अभ्यास में समय व्यतीत किया। इस  अवधि में छात्र-छात्राओं ने ज्यादा समय अपने अध्ययन में दिया।  भले ही स्कूल कॉलेज नहीं खुले, पर उनकी किताबों के पन्ने हर रोज खुलते  रहे। अपने अभिभावकों के समक्ष उनका अध्ययन और गंभीरता से हुआ। इससे उन्हें परीक्षा में अवश्य लाभ मिलेगा। इंटरनेट, सोशल मीडिया और फोन से कार्यालयीन, सामाजिक, पारिवारिक और मित्रों के बीच संवादों  का क्रम निरंतर चलता रहा। अधिकारियों और कर्मचारियों ने वर्क फ्रॉम होम से अपनी गतिविधियां जारी रखी। अच्छी पहल यह रही कि लोग स्वास्थ्य के प्रति अधिक जागरूक हुए। जो मित्र या संबंधी वर्षों तक आपस में बात नहीं करते थे, वे इस अवधि में एक-दूसरे के नजदीक आए। फोन पर कुशलता आपस में पूछते रहे।  इस तरह लोगों के बीच रिश्तो में मिठास बढ़ी  है। लॉकडाउन में लोगों ने अनुभव किया कि पैसा काम नहीं आ रहा है। उन्होंने महसूस किया कि उनका जीवन स्तर और साधारण व्यक्तियों के जीवन स्तर में कोई अंतर नहीं है।  महानगरीय संस्कृति और विलासिता का जीवन जीने वाले लोगों को अवश्य ही परेशानी हुई है। इस अवधि में कुछ दुखद पहलू भी सामने आए हैं।  मजदूरों को शहरों से गांव की ओर मजबूरी में वापस आना पड़ा।  उद्योग धंधे बंद होने से वे बेरोजगार हुए।  यह मानवता पर सबसे बड़ा संकट है । शुरू में केंद्र सरकार ने आवश्यक निर्देश जारी नहीं किए।  जब मजदूर सड़कों पर आए, तब उन्हें यह समस्या दिखाई दी और उन्होंने राज्य सरकारों से व्यवस्था करने को कहा, परंतु राज्य सरकारों ने पर्याप्त व्यवस्था नहीं की।  बाद में उच्चतम न्यायालय ने निर्देश दिया कि राज्य सरकारें मजदूरों को रेल या बसों से उनके गंतव्य तक भेजे और भोजन पानी की व्यवस्था भी करें। यदि यह निर्देश केंद्र सरकार पहले ही जारी कर देती, तो यह नोबत नहीं आती।  कुल मिलाकर लोग डाउन के समय ने आदमी को मानवीयता का सबक सिखाया है। माया, मोह, लोभ, असत्य, अहंकार जैसे अवगुणों पर काफी हद तक विराम लगा है।  यह अच्छी बात है कि वह सदाचरण और अच्छी आदतों की ओर आगे बढ़ा हैं । फिजूलखर्ची पर रोक लगी है। स्वदेशी और आत्मनिर्भरता के विषय में मनुष्य की रुचि बढ़ी है। भविष्य के प्रति मन में नई आशाओं का संचार हुआ है। मनुष्य ने यह  सीखा कि प्रकृति से जुड़कर चलने में ही उसकी भलाई है ।

*श्रीराम माहेश्वरी, भोपाल

 


इस विशेष कॉलम पर और विचार पढ़ने के लिए देखे- लॉकडाउन से सीख 


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