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परम्परा की डिजिटल काव्य गोष्ठी



देश में लॉकडाउन की स्थिति को देखते हुए साहित्य एवम समाज को समर्पित संस्था "परम्परा" गुरुग्राम द्वारा साहित्य की अविरल धारा बहाने हेतु काव्य गोष्ठियों का अनवरत क्रम ज़ारी है। इसी क्रम में एक 'डिजिटल काव्य गोष्ठी' का आयोजन मंगलवार, दिनांक 05 मई'2020 को किया गया। इसमें अपने-अपने घरों से ही मोबाइल के माध्यम से कविताएं सुनाकर, गोष्ठी सफलतापूर्वक आयोजित की गई । गोष्ठी की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकारा श्रीमती सविता स्याल ने की। मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे उज्जैन से "शब्द प्रवाह" पत्रिका के सम्पादक श्री सन्दीप सृजन। गोष्ठी का आयोजन एवम संचालन परम्परा के संस्थापक अध्यक्ष राजेन्द्र निगम "राज" द्वारा किया गया।


इस गोष्ठी में कोरोना वायरस से लड़ने हेतु जागरूकता फैलाने वाली रचनाओं के साथ ही अन्य विषयों पर भी रचनायें प्रस्तुत की गईं। प्रतुत रचनाओं की एक बानगी इस प्रकार है-


श्रीमती सविता स्याल- 
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"हरी भरी घास पर रंगबिरंगे फूलों के बीच
 खिलखिला उठता हूँ मैं किलकारियां मारते बच्चों के साथ"


"कवि होता है सच शब्दों का खिलाड़ी
 न जाने क्यों लोग समझें उसे अनाड़ी"


श्री सन्दीप सृजन-
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"कबिरा इतना लिख गए,क्या लिक्खें हम यार
 उनकी तो थी साधना,हम करते व्यापार"
 
 "तुलसी जैसा तप कहाँ,कहाँ कलम में भार
  अब घिसियारे कलम के,मांगें पद दरबार"


श्रीमती मीना "सलोनी-
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"आग की भँवर में रास्ता किसको दें
 आगे भागना है धक्का किसको दें"
 
 "गली-गली शहर में मची खलबली
  आहिस्ता चल मशवरा कसको दें"
 
श्रीमती इन्दु "राज" निगम-
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"मेरे ऑंसू पी लेते हो, चुपके चुपके आकर तुम
 मुझको आस बंधा देते हो, चुपके चुपके आकर तुम"
 
 "ज़रा मुस्कराएं हम, ज़रा गुनगुनाएं हम
  ज़माने के सब ग़म, चलो भूल जाएं हम"


श्री राजेन्द्र निगम "राज"-
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"चमत्कार के इंतज़ार में बीता जाए जनम
 खुशियाँ तितली बन कर उड़ गईं साथ रह गए ग़म"
 
"उनको सूरज चाँद दिला दूँ, मेरे बस की बात नहीं
 ताजमहल या लाल किला दूँ, मेरे बस की बात नहीं"


 


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