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पारिवारिक रिश्तों को एक मजबूती दे गया ये लॉकडाउन



लॉकडाउन ने पूरे देश में जीवन जैसे ठप्प कर दिया।  जीवन में  अचानक आये  इस बदलाव के लिए शायद हम मानसिक रूप से  तैयार नहीं थे। पर ज्यों ज्यों समय बीतता गया हम धीरे -धीरे इस नयी जीवनशैली को अपनाते गए। कई मुश्किलें इस दौरान आयी।  कभी सब्जी कभी फल तो कभी जीवन की अत्यावश्यक वस्तुओं का अभाव।  रोज की भागदौड़ वाली जिंदगी और फ्लैट संस्कृति ने हमे एक दूसरे से दूर कर दिया था।  पर संकट की इस घड़ी में सब एक दूसरे का ख्याल रखते।  बच्चे और बुजुर्ग जैसे सभी की जिम्मेदारी हो गए थे।  पड़ोसियों  से संवाद बढ़ा , लोग एक दूसरे के काम आने लगे। कभी किसी की दवाई लाई जाती तो कभी किसी की सब्जी।  जैसे पूरी सोसाइटी एक परिवार बन गयी थी।  परिवार में एक दूसरे के साथ समय बिताने का मौका जैसे एक वरदान साबित हुआ।  संवाद बढ़ा तो एक दूसरे को समझने में आसानी हुई।  सब मिलजुल कर घर के काम में सहयोग देने लगे। डॉक्टर्स ,नर्सेस , सफाई कर्मचारी , पुलिस और आर्मी जिस मुस्तैदी से अपना दायित्व कठिन परिस्थितियों में निभा रहे थे उनके प्रति आस्था और श्रद्धा बढ़ी । मित्रों रिश्तेदारों से हाल चाल पूछने का सिलसिला बहुत समय बाद हुआ।सोसाइटी का वॉचमैन , सफाई वाला , दूध वाला , महरी  सभी की समस्याओं से अवगत तो जरूर थे पर महसूस पहली बार हुई।  लॉक डाउन का प्रादुर्भाव और वह कितना कारगर साबित हुआ इस विषय पर राजनैतिक चर्चा तो होती ही रहेगी पर निश्चित रूप से लोग इस दौरान एक दूसरे के करीब आए  है। सामाजिक और पारिवारिक रिश्तों को एक मजबूती दे गया ये लॉक डाउन। वसुधैव कुटुम्बकम सही मायनो में आज अपनी पहचान बना पाया है।

*केर्मन बोधनवाला, पुणे

 


इस विशेष कॉलम पर और विचार पढ़ने के लिए देखे- लॉकडाउन से सीख 


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