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नकारात्मक काल में सकारात्मक हुई सोच


कोरोना काल का समय नकारात्मक है किंतु इस समय में सोच बहुत सकारात्मक हुई है । कोरोना जैसी वैश्विक महामारी ने जीने का दृष्टिकोण ही बदल दिया है ।ज़रूरी और गैर ज़रूरी चीजों में अंतर आज अच्छे तरीके से समझ आ रहा है। घर,परिवार और एक एक पैसे का महत्व कोरोना ने अलग अंदाज़ में समझाया है। मॉल, सिनेमा ,सैर सपाटा ,कपड़ों पर फिजूखर्ची,  ब्यूटीपार्लर आदि की याद नहीं आ रही । घर में खाने पीने की चीजों का भंडारण कर रहे है, जोकि पहले समय में अमूमन हर घर में किया जाता था। आज घरेलू नुस्खे से ही स्वयं की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने का प्रयास चल रहा है, योग हो रहा है खान-पान पर अच्छी तरह से ध्यान दिया जा रहा है, परिवार वाले एक दूसरे के साथ समय बिता रहे हैं,  बच्चे घर के कार्य में सहयोग दे रहे हैं, साथ में खेल रहे हैं , खट्टी मीठी नोकझोंक के साथ समय घर में ही बिता रहे है। पड़ोसी बाज़ार जाने से पहले पूछ कर जाते हैं कि आपको तो कुछ नहीं चाहिए, रिश्तेदार एक दूसरे को फोन करके हालचाल पूछ रहे है। रोटी, कपड़ा और मकान जीवन की मूलभूत आवश्यकताएं हैं वैसे ही फोन और नेट ने कोरोना की विषम परिस्थिति में जीवन बहुत सरल बनाया है ,आवश्यक सामान को ऑनलाइन ही खरीदते  है, बच्चों पढ़ाई ऑनलाइन हो रही है तो ऑफिस के कार्य भी ऑनलाइन ही किया जा रहे है।
*डॉ वर्षा सिंह,मुंबई


इस विशेष कॉलम पर और विचार पढ़ने के लिए देखे- लॉकडाउन से सीख 


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