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न अपनी ख़बर है  न अपना पता है



*हमीद कानपुरी


विदेशों  की  ख़बरें  बहुत जानता है।

न अपनी ख़बर है  न अपना पता है।

 

हरइक बात आकर बहुत पूछ्ता है।

कहा पर  किसी का नहीं मानता है।

 

ज़माना  उसे  छोड़   देता  है  पीछे,

बड़ी देर तक जो  बहुत  सोचता है।

 

सियासी  मुहब्बत  करे रोज़  सबसे,

मुहब्बत  को व्यापार  ही मानता है।

 

नफा कुछ जहाँ भी न  देता दिखाई,

खमोशी  की चादर  वहाँ ओढता है।

 

किसे चाहिए क्या झिझक बिन बता दो,

मददगार   हरदम   यही  पूछता  है।

 

*हमीद कानपुरी,कानपुर

 


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