*कैलाश सोनी सार्थक
मत पूछिये किसी से कहो कैसा हाल है
हर आदमी की ज़ीस्त ही उलझा सवाल है
मत हाथ छ़ोडना ये मुहब्बत है काम की
हर शै मिलेगी कदमों में ऐसी ये ढ़ाल है
अब ऐश ढूँढने की तमन्ना नहीं रही
महफ़ूज जिंदगी जियें ये ही कमाल है
पैदल भी सिर उठाता है राजा के सामने
शतरंज की बिसात पे यह कैसी चाल है
उससे करो न शिकवा गिला मेरे दोस्तो
जो ख़ुद का बोझ ढोने से दिखता निढाल है
सोचा न था वही हमें आकर रुला गया
तकदीर का बुना हुआ ये कैसा जाल है
माता पिता की सेवा में सोनी रहो लगे
इनकी दुआ मिली जिसे वो मालामाल है
*कैलाश सोनी सार्थक, नागदा
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