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मैंने कविता लिख दी...



*सौरभ 'चातक'


मेरे शब्द   कुछ  गीले , कुछ सूखे.
कुछ   तजुर्बेकार  ,  कुछ    रूखे.
सुई वाक्य में जिंदगी धागा पिरोकर.
आत्म  प्रसव   पीड़ा  से   गुजरकर.

मैंने कविता लिख दी...

 

मैंने कुछ शब्द सोचे  ,कुछ को सुना.
कल्पनाओं  का  ताना - बाना  बुना.
उच्चतम भावों  की  लेकर  तलाशी.
अलंकार  हथौड़े  से  कर नक्काशी.

मैंने कविता लिख दी...

 

मैंने कुछ शब्दों को  नापा- तौला.
मन  अभिव्यक्ति  का राज खोला.
शब्दकोश से चुराकर  नव - दृष्टि.
विचारों के गठबंधन से रच  सृष्टि.

मैंने कविता लिख दी...

 

संभलकर चढ़ा अनुभूति के चरण.
संजीदगी से पढ़ा जीवन व्याकरण.
शब्द पराग पर भाव तितली बिठा.
नन्हे शब्दों को नर्म हाथों पर लिटा.

मैंने कविता लिख दी...

 

श्री अक्षर ,अक्षत पर जल्दी जल्दी.
मौलिकता  की   लगाकर   हल्दी.
यमक,श्लेष,उपमा की गोद लेटकर.
कलम  जिगर  से ,फलक  स्लेट पर.

मैंने कविता लिख दी...

 

विचारों  को  बना  रेशम  की  गिट्टी.
सिर माथे  लगा साहित्य  की  मिट्टी.
नमक आंसुओं पर शहद लपेटकर.
शिशु व्यंजनाओं को छाती समेटकर.

मैंने कविता लिख दी...

 

भाव पथ पर चलकर शब्दों की चाल.
बेमिसाल उपमाओं की देकर मिसाल .

विशेष विशेषण को देकर अभिव्यक्ति.
रस ,छंद ,समास की ले अनुपम शक्ति.

मैंने कविता लिख दी...

 

संज्ञा हाथ में सर्वनाम की मेहंदी लगा.
समाज कागज पर मन कलम  चला.
हिंदी व्यंजन में शब्दो का भर मकरंद.
विशेषण में डालकर वर्ण रस का छंद.

मैंने  कविता लिख दी...

*सौरभ 'चातक', उज्जैन


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